चेन्नई के आयोजन में संत परंपरा पर रामलखन गुप्त ने रखें अपने विचार

चाकघाट। दक्षिण भारत के प्रमुख संस्कृतिक नगर चेन्नई में भारत सरकार के केंद्रीय संस्कृत तमिल संस्थान भवन में एक साप्ताहिक तक चली तिरुक्कुरल अनुवाद की राष्ट्रीय कार्यशाला में भाग लेने हेतु देश के विभिन्न प्रांतो से आए विद्वानों एवं भाषा विशेषज्ञों के समक्ष भारतीय जनमानस के सर्वांगीण विकास में संतो की अहम भूमिका को लेकर चाकघाट मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार राम लखन गुप्त ने अपने विचार रखें। उन्होंने अपने विचार के दौरान कहा कि संत के उदात्त विचारों को किसी भी परिधि में नहीं बांधा जा सकता। जब समाज में लोग सत्य को बोलने की क्षमता खो बैठते हैं तब ऐसे समय में संत अपनी वाणी से समाज को मार्गदर्शन प्रदान करने का काम करता है। जन कल्याण के लिए अनेक संतों ने प्रताड़ना और यातना सही है उसके बावजूद भी वे जनकल्याण की बातों को लेकर कहीं भी पीछे नहीं रहे। दक्षिण में तमिल संस्कृत के संत तिरुवल्लुवर जी की अमर साहित्य का सर्व भाषा में हो रहा भावानुवाद राष्ट्र और समाज को नई चेतना प्रदान कर रहा है जो वंदनीय है। जिस सत्र में रामलखन गुप्त ने अपने विचार रखें उस सत्र की अध्यक्षता अवकाश प्राप्त शिक्षक एवं गांव की नई आवाज के संपादक विजय चिरौरी ने की। चेन्नई में एक सप्ताह तक चले इस बौद्धिक व्याख्यान माला में डॉ. एस.राजगोपालन (बैंगलोर), राम लखन प्रजापति प्रतापगढ़ी (प्रयागराज), प्रोफेसर ममता शर्मा (नई दिल्ली), डॉ. किशोर वास्वानी (पूना महाराष्ट्र), डॉ.गीता शर्मा (रायपुर,छ.ग.), प्रो.दिलीप सिंह (वाराणसी), डॉ.मीनाक्षी जी मुर्मू (झारखंड), डॉ. वीना बुंदकी(कश्मीर), डॉ.कृष्ण चन्द्र गोस्वामी (वृन्दावन), डॉ.गजादान चरण (राजस्थान), प्रो.स्कंद कुमार मिश्रा (रीवा), डॉ. रामनिवास मानव (हरियाणा), डॉ. रामचंद्र राय (बंगाल), डॉ. बी. नाटराजन (चेन्नई), डॉ.गिरिवाला मोहंती (शांतिनिकेतन), डॉ.सुनीता दहल (दार्जिलिंग), डॉ. जागृति संघवी (कच्छ गुजरात), डॉ. अमानुल्ला (चेन्नई), डॉ. सुषमा रानी (जम्मू), डॉ दयाराम मौर्य (प्रतापगढ़), डॉ एम. गोविंद राजन, विजय बहादुर सिंह (प्रयागराज) आदि ने अपने विचार रखे। आयोजित कार्यक्रम के दौरान महाबलीपुरम एवं कांचीपुरम के ऐतिहासिक स्थलों का भी दर्शन कराया गया। समापन सत्र में संस्था की ओर से प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिन्ह प्रदान किया गया। (रामलखन गुप्त)

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