नईगढ़ी। सत्यापन के नाम पर बार-बार जनपद स्तर से जांच कराई जा रही है और जांच कराए जाने के बाद पुनः उतनी ही रिकवरी बनने के बाद भी मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा सीधे एफआईआर दर्ज करवाए जाने के बजाए पूर्व सरपंच सचिव और चहेते इंजीनियरों को बचाने का काम कर रहे हैं। जबकि धारा 40 और 92 के मामलों में 120 दिन अर्थात 4 महीने के भीतर अंतिम कार्यवाही किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह लक्ष्य तत्कालीन एडिशनल चीफ सेक्रेटरी राधेश्याम जुलानिया के द्वारा निर्धारित किया गया था। अब देखा जाय तो यह हाल मात्र नईगढ़ी की जिलहड़ी ग्राम पंचायत का नहीं है बल्कि पूरे रीवा जिले की अधिकतर ग्राम पंचायतों में यही खेल खेला जा रहा है। काफी जद्दोजहद के बाद शिकायत की जांच होने के बाद भी जिला पंचायत के सीईओ और धारा 40/92 देखने वाले परियोजना अधिकारी राजेश शुक्ला द्वारा खेल प्रारंभ कर दिया जाता है। पहले सरपंच सचिव रोजगार सहायक और इंजीनियर को बुलाया जाता है फिर सांठगांठ करके निचले स्तर के अधिकारियों के द्वारा जांचें करवाई जाती हैं। कई जांचों को बार-बार करवाने से उनकी रिकवरी और वसूली की राशि भी कम कर दी जाती है जबकि मौके पर कोई काम हुए नहीं होते।
बड़ा सवाल यह है कि जब पिछली 7 साल के पंचायती कार्यकाल में तत्कालीन सरपंच सचिव और इंजीनियर ने कार्य नहीं करवाए और राशि का बंदरबांट कर लिया जो कि एसडीओ की जांच में कई बार साबित हो चुका है तो ऐसे में नए सरपंचों के कार्यकाल में वह पुराने काम कैसे पूरा किया जाएगा? दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात कि बिना कार्य करवाए ही राशि का बंदरबांट कर लिया गया ऐसे में सीधे गबन के लिए एफआईआर क्यों दर्ज नहीं करवाई जाती? तत्कालीन अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार श्रीवास्तव ने गबन और दुर्वियोजन के मामले में सीधे एफआईआर दर्ज करवाने के निर्देश दिए थे लेकिन इसके बाद भी न तो पूर्व जिला पंचायत सीईओ और न ही वर्तमान जिला पंचायत सीईओ द्वारा गबन के मामलों में एफआईआर दर्ज करवाई जा रही। अब इसको लेकर पंचायतों में भ्रष्टाचार के मुद्दे उठाने वाले लोग और सामाजिक कार्यकर्ताओं में काफी आक्रोश है। जिलहडी पंचायत के सुधाकर सिंह ने बताया कि यदि जल्द वसूली मनाया जाकर एफ आई आर दर्ज नहीं की जाती तो वह जिला पंचायत रीवा में धरने पर बैठ जाएंगे। ( शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक कार्यकर्त्ता )
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